पृथ्वीराज चौहान (पृथ्वीराज तृतीय)
संरक्षक
प्रधानमंत्री – कदमवास (कैमास)
सेनापति – भुवनमल
माँ – कर्पूरीदेवी
पृथ्वीराज तृतीय के प्रमुख सैनिक अभियान में विजय
पृथ्वीराज के पिता का असमय देहांत हो जाने के कारण मात्र 11 वर्ष की अल्प आयु में पृथ्वीराज तृतीय अजमेर की गद्दी के स्वामी बने.
नागार्जुन का अंत –
पृथ्वीराज के राजकाज संभालने के कुछ समय बाद उसके चचेरे भाई नागार्जुन ने विद्रोह कर दिया वह अजमेर का शासन प्राप्त करने का प्रयास कर रहा था पृथ्वीराज ने अपने मित्र कैमास की सहायता से नागार्जुन का दमन किया था.
भण्डानक जाति का दमन –
भण्डानक जाति सतलज नदी के आसपास रहने वाली थी. जिसने अपना प्रभाव अलवर, भरतपुर, मथुरा तक फैला दिया था. उनका दमन पृथ्वीराज चौहान (पृथ्वीराज तृतीय) ने 1182 ई. में कर दिया था.
महोबा के चंदलों पर विजय –
पृथ्वीराज चौहान के सैनिक दिल्ली विजय से लौट रहे थे तो मोहबा शासक परमर्दी देव चंदेल ने कुछ सैनिक मरवा दिए थे जिससे पृथ्वीराज को गुस्सा आ गया इन दोनों के बीच तुमुल का युद्ध हुआ यह युद्ध नारायणा उत्तर प्रदेश नामक स्थान पर हुआ था. परमर्दी देव के सेनापति आल्हा व उदल मारे गए थे
जिसमें पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई थी.
चौहान गढ़वाल संघर्ष( कन्नौज से संबंध)
पृथ्वीराज के समय कन्नौज पर गढ़वाल शासक जयचंद्र का शासन था. जयचंद पृथ्वीराज दोनों की राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षाओ ने आपसी वैमनस्य उत्पन्न कर दिया था. उसके बाद उसकी पुत्री संयोगिता को पृथ्वीराज द्वारा स्वयंवर से उठाकर ले जाने के कारण दोनों की शत्रुता और भी अधिक बढ़ गई थी.
पृथ्वीराज और संयोगिता के बीच गंधर्व विवाह हुआ था,
चौहान – चालुक्य संघर्ष –
सन 1184 के लगभग गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय के प्रधानमंत्री जगदेव प्रतिहार एवं पृथ्वीराज की सेना के मध्य नागौर का युद्ध हुआ, जिसके बाद दोनों में संधि हो गई एवं चौहान की चालूक्यों से लंबी शत्रुता का अंत हो गया था.
पृथ्वीराज व मोहम्मद गौरी –
पृथ्वीराज के समय भारत के उत्तर पश्चिम में गौर प्रदेश पर साबुद्दन मोहम्मद गौरी का शासन था, उसने गजनी के शासक सुल्तान मलिक खुसरो को हराकर गजनवी द्वारा अधिकृत सभी क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था, मोहम्मद गौरी धीरे-धीरे अपने राज्य का विस्तार करता रहा.
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच हुए युद्ध
तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ईस्वी –
पृथ्वीराज चौहान अपने क्षेत्र से अपराधियों को भगाने हेतु सरहिंद पर आक्रमण करने हेतु बढा
मोहम्मद गोरी अपने निजी क्षेत्र को बचाने हेतु विशाल सेना सहित उत्तरायण के मैदान (हरियाणा के करनाल में थानेश्वर के मध्य तराइन) के मैदान में आ पहुंचा पृथ्वीराज भी अपनी सेना सहित वहां पहुंच गया दोनों सेनाओं के मध्य 1191 ईस्वी में तराइन का प्रथम युद्ध हुआ. इसमें दिल्ली के गवर्नर गोविंद राज ने मोहम्मद गौरी को घायल कर दिया, घायल गोरी युद्ध भूमि से बाहर निकल गया एवं कुछ ही समय में गोरी की सेना भी मैदान छोड़कर भाग गई थी पृथ्वीराज ने विजय के बाद भागती हुई गौरी की सेना का पीछा नहीं किया, जिसका खामियाजा पृथ्वीराज को अगले वर्ष 1192 में हुए तराइन के द्वितीय युद्ध में भुगतना पड़ा.
तराइन का द्वितीय युद्ध 1192 ई. –
प्रथम युद्ध में जीत के बाद पृथ्वीराज निश्चित होकर आमोद प्रमोद में व्यस्त हो गया जबकि गोरी ने पूरे मनोयोग से विश्वास है ना फोन एकत्रित की युद्ध की तैयारी में व्यस्त रहा 1 वर्ष बाद 1192 मैं ही गोरी अपनी विशाल सेना के साथ पृथ्वीराज से अपनी हार का बदला लेने हेतु उत्तरायण के मैदान में उन्हें आ पहुंचा. पृथ्वीराज को समाचार मिलते ही वह भी सेना सहित युद्ध मैदान की और आ पहुंचा उसके साथ उसके बहनोई मेवाड़ शासक समर सिंह एवं दिल्ली के गवर्नर गोविंद राज भी थे.
– गोरी ने संदेश भिजवाया कि पृथ्वीराज आप या तो इस्लाम कबूल कर लो या अधीनता स्वीकार कर लो, पृथ्वीराज प्रत्युत्तर में मोहम्मद गौरी को कहता है कि गोरी तुम अपने देश चला जाना चाहिए. नहीं तो आपकी भेट मैदान युद्ध स्थल में होगी, गोरी ने वापस संदेश भिजवाया और कहा कि मैं अपने भाई से पूछ कर बताऊंगा कि युद्ध करना है या नहीं, पृथ्वीराज के सैनिक सुबह शौचदी में व्यस्त थे. तभी अचानक गोरी आक्रमण करता है इस आक्रमण को पृथ्वीराज की सेना झेल नहीं पाती है. और पृथ्वीराज तृतीय सिरसा हरियाणा में मारा जाता है.
– दोनों सेनाओं के मध्य तराइन का द्वितीय युद्ध हुआ जिसमें मोहम्मद गौरी साम दाम दंड भेद की नीति से विजय हो गया था. अजमेर एवं दिल्ली पर उसका अधिकार हो गया तराइन के युद्ध के बाद गौरी ने अजमेर का शासन भारी कर के बदले पृथ्वीराज के पुत्र गोविंद राज को दे दिया.
– तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास की एक निर्णायक एवं युग परिवर्तनकारी घटना साबित हुआ. इससे भारत में स्थाई मुस्लिम साम्राज्य का प्रारंभ हुआ मोहम्मद गौरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य का संस्थापक बना
दोनों युद्धों का वर्णन –
तराइन के दोनों युद्ध का विस्तृत वर्णन कवि चंद्रवरदाई के ‘पृथ्वीराज रासो’ हसन निजामी के ‘ताजुल मासिर’ एवं सिराज के ‘तबकात-ए-नासिरी’ में मिलता है.