मेंडलवाद (ग्रेगर जॉन मेंडल) मेंडल के आनुवांशिकता के नियम

 मेंडलवाद (ग्रेगर जॉन मेंडल) मेंडल के आनुवांशिकता के नियम  


ग्रेगर जॉन मेंडल का जीवन परिचय –
  ग्रेगर जॉन मेंडल को आनुवशिकता का जनक कहा जाता है. 

क्योंकि मेंडल ने सर्वप्रथम वंशागति के नियमो का प्रतिपादन किया. 

  मेंडल का जन्म 22 जुलाई 1822 को आस्ट्रियो के हेन्जनडोर्फ़ प्रान्त के सिलिसियन नामक गाव में हुआ. 

उन्होंने अपने सभी प्रयोग पादरी रहते हुए चर्च में ही किये. 

मेंडल के वंशागति के नियम –

1. प्रभाविता का नियम –

                                 यह नियम मेंडल द्वारा प्रतिपादित एक संकर संकरण के परिणामो पर

आधारित हैं. इस नियम के अनुसार जब एक लक्षण के लिए विपर्यासी सम्युग्मजी पादपो में संकरण 

कराया जाता है तो वह लक्षण जो F1 पीढ़ी में अपनी अभिव्यक्ति दर्शाता है , प्रभावी कहलाता है. 

तथा वह लक्षण जो F1 पीढ़ी में अपनी अभिव्यक्ति नहीं  दर्शाता है उसे  अप्रभावी  कहते है |

उदहारण – 

                  यदि शुद्ध या सम्युग्मजी लंबे (TT) पौधे को  शुद्ध या सम्युग्मजी बौने (tt) पौधे से संकरण 

कराया जाता है तो F1 पीढ़ी में सभी पौधे (100%) लम्बे (Tt) प्राप्त होते है | 

                                                                          2. पृथक्करण का नियम (युग्मको की शुद्धता का नियम ) – 

      यह नियम  मेंडल  के एक्संकर संकरण

 पर आधारित है. इस नियम के अनुसार  – F1  पीढ़ी के संकर  या विषमयुग्मजी से युग्मक बनते समय 

दोनों युग्मविकल्पी एक – दुसरे से पृथक होकर अलग अलग युग्मको में चले जाते है अत इसे 

 पृथक्करण  का नियम या विस्योजन का नियम कहते है तथा प्रत्येक युग्मक में एक  लक्षण के लिए 

एक युग्मविक्ल्पी पाया जता है अत  युग्मको की शुद्धता का नियम भी कहते है. 

3. स्वतंत्र अप्व्युहन का नियम – 

                                                मेंडल  का यह नियम द्विसंकर संकरण  के परिमाणों पर आधारित है 

इस नियम के अनुसार – यदि दो या दो से अधिक विपर्यासी लक्षणों युक्त पादपो को संकरण कराया

 जाता है  तो एक लक्षण की  वंशागति का दुसरे लक्षण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात प्रत्येक 

लक्षण के युग्मविकल्पी केवल पृथक ही नहीं होते अपितु विभिन्न लक्षणों के युग्मविकल्पी एक – 

दुसरे के प्रति स्वतंत्र रूप से व्यवहार करते है  या स्वतंत्र रूप से अप्व्युहित होते अत इसे स्वतंत्र 

अप्व्युहन का नियम कहते है |