राजस्थानी शब्दों के हिन्दी रूप (Hindi forms of Rajasthani words) –

 राजस्थानी शब्दों के हिन्दी रूप (Hindi forms of Rajasthani words) –

राजस्थानी शब्दों के हिन्दी रूप (Hindi forms of Rajasthani words) – 



खरोटा– पशुओं को चारा डालने का लकड़ी या पत्थर का उपकरण। 

खूंटा – पशुओं को बांधने का लकड़ी या पत्थर का स्तंभ होता है जिस पर हम पशुओं को रस्सी के द्वारा बांधते हैं। 

तोड़ियो-ऊंट का बच्चा राजस्थानी भाषा में हम ऊंट के छोटे बच्चे को  तोड़ियो कह कर पुकारते हैं। 

रीस – राजस्थानी भाषा में इस शब्द का अर्थ है जब हमारा किसी के साथ झगड़ा या लड़ाई हो जाती है. तो उसे हम राजस्थानी भाषा में रीस के पुकारते हैं. अर्थार्त किसी के साथ झगड़ा हो जाना।

जरबा– सवा हाथ लंबे पशु की खाल से बनाए जाने वाले जूते को हम राजस्थानी भाषा में  जरबाकहते हैं।

बसेरा– पशुओं के लिए  खेतों से हरा चारा लाकर उसे सुखाकर जिस स्थान पर रखा जाता है उसे बसेरा कहा जाता है।

परोसा/कांसौ- राजस्थान में जब किसी घर परिवार में कोई प्रोग्राम होता है तो भोजन के कार्यक्रम में आमंत्रित व्यक्ति के नहीं आने पर उसके घर भेजा जाने वाला भोजन।

घटुलियो– पत्थर की बनी छोटी चक्की जिसे हम हाथ के द्वारा चलाते हैं. अर्थात  पत्थर की बनी हाथ की छोटी चक्की। 

नूजणा– गाय के पैरों में जब हम दूध निकालते हैं तो गाय के पीछे के दोनों पैरों को बांध करें दूध निकाला जाता है.अर्थात पैरों को बांधकर दूध निकालने वाली रस्सी। 

घीलड़ी– अलुणा घी रखने का पात्र मिट्टी या सिल्वर, स्टील की बनी होती है। 

तांती – कच्चे सूत या मूली का धागा जो हम देवता की जोत के ऊपर घुमाकर जो व्यक्ति या महिला या पशु बीमार होता है उसके बांदा जाता है। 

बिलौवनी– छाछ बनाने का मिट्टी का मटका या मटकी। 

जावणी– सुबह व शाम को पशुओं का दूध निकालकर दूध गर्म करने या दही जमाने का जो बर्तन काम लेते हैं उसे जावणी कहते हैं। 

बाजोट – लकड़ी से बनाया गया चौकीदार पाटा जिसके नीचे चार पाये लगे होते हैं। 
 

तकावी – जो किसान होते हैं उनको कृषि कार्य के लिए कृषकों को राज्य द्वारा अग्रिम धनराशि दी जाती है। 

खागला– पशुओं को डाले जाने वाला सुखा चारा। 
 

खीस – जब गाय भैंस जाने पर उन से निकाले जाने वाला पहली बार का दूध जिसे राजस्थानी भाषा में खीस कहते हैं। 

रोड़ी – पशुओं का जो गोबर होता है उसे देखने का ढेर

कलेड़ी– पानी पीने वाली मटकी को फड़कर बनाया गया तवा, जिस पर हम बाजरे की रोटी पकाने के लिए काम लेते हैं। 

आलंग– चारा ले जाने का बड़ा साधन जो कि कपड़े से बना होता।

लाड़ी– शादी के बाद घर पर आने वाली है नव विवाहित वधू/ दुल्हन। 

ढींगरा – जब पशुओं को खेत में चराने के लिए ले जाते हैं तब उनके गले में जो हम लटकाने वाली लकड़ी का टुकड़ा काम लेते हैं उसे पशुओं को भागने से रोकने के लिए गले में डाला जाता है। 

डांगरी रात – तीर्थ यात्रा से लौटकर किया जाने वाली रात्रि जागरण

खूँटा– पशुओं को बांधने के लिए लकड़ी या पत्थर का जो स्तंभ जमीन में गाढ़ा जाता है. तथा पशुओं को रस्सी की सहायता से बांध जाता है। 

गाडूलौ– तीन पहियों का होता है जो की बच्चों का खिलौना होता है जिससे बच्चा खड़ा होकर चलाना सीखता है तथा चलना सीखता है। 

बटेवड़े /पिंडारा– हर गांव में गाय-भसों के गोबर से उपले, थेपड़ी, छाणौ, बनाकर वर्ष भर के लिए सुरक्षित रखने के लिए बनाए जाने वाले घर।