व्यक्तिगत विभिनता पर आधारित आधारित प्रविधियां – पार्ट – 2
1- डेक्रोली प्रणाली ( Decroly Method) –
प्रवर्तक- डेक्रोली
डेक्रोली विधि में विद्यालय का वातावरण प्राकृतिक होता है.
जहां बालक को उदार शिक्षा दी जाती है.
इस विधि में बालकों का विभाजन उनकी रूचि और क्षमता के अनुसार किया जाता है.
इस विधि में बालक में सामाजिक भावना का विकास किया जाता है.
यह विधि 4 वर्ष से 19 वर्ष के बालकों लिऐ होती है.
2 – अभिक्रमित अनुदेशन विधि ( programmed Method) –
प्रवर्तक B.F. स्किनर
यह एक बिनेटीका का प्रणाली का ही रूप है.
जिस प्रकार से बिनेटीका प्रणाली में हम बालकों को पाठ्यक्रम को छोटी छोटी इकाइयों में बांट लेते हैं.
वैसे ही अभिक्रमित अनुदेशन विधि में पाठ्यक्रम को छोटे-छोटे भाग में बांट दिया जाता है. इस विधि में बालक स्वयं अध्ययन करते हैं.
इस विधि में समय का बंधन होता है.
इस प्रणाली में शिक्षक मार्गदर्शन का कार्य करता है.
अभिक्रमित अनुदेशन एक आधुनिक अनुदेशन प्रणाली मानी जाती है, जिसका सर्वप्रथम विचार 1920 में सिडनी एल प्रैसी ने दिया पर प्रैसी तथा उसके सहयोगीयों ने प्रश्नों की एक ऐसी श्रृंखला का निर्माण किया, जो विद्यार्थियों के सम्मुख हो एक निश्चित क्रम में प्रस्तुत की जा जाती थी।
विद्यार्थियों द्वारा इन प्रश्नों के प्रति अनुक्रिया करने पर आधारित प्रश्नों के उत्तर देने पर उन्हें तत्काल ही सही एवं गलत होने की सूचना दी जाती थी। प्रैसी के इस मॉडल को मिश्रित अभिक्रमित अनुदेशन मॉडल कहा गया। तथा यह हार्डवेयर उपागम पर आधारित था। किंतु 1954 में अमेरिका के बीएफ स्किनर तथा उनके सहयोगी होल्डर ने इस पद्धति पर आधारित एक ऐसी शिक्षण मशीन जो सॉफ्टवेयर उपागम पर आधारित थी का प्रयोग किया गया जिसकी कार्यप्रणाली यह थी कि वे जटिल विषय वस्तु को छोटे-छोटे पदो में निश्चित क्रम में सरल से कठिन की ओर प्रस्तुत करती थी। वह बालकों द्वारा प्रतिक्रिया देने पर उन्हें तत्काल इस बात की सूचना देती थी की प्रतिक्रिया सही है या गलत इसे तत्काल पुनर्बलन कहा गया। स्किनर का स्पष्ट मानना था कि निरंतर पृष्ठ पोषण से व्यवहार परिमार्जन सुगमता से किया जा सकता है तथा बालकों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन शीघ्रता से लाया जा सकता है। इस स्किनर के अधिगम सिद्धांत पर आधारित इस आधुनिक प्रणाली के प्रतिपादन के फलस्वरूप ही स्किनर को अभिक्रमित अनुदेशन का जनक कहा गया।
स्केनर के अनुसार अभिक्रमित अनुदेशन शिक्षण की कला तथा सीखने का विज्ञान है।
अभिक्रमित अनुदेशन के निम्न प्रकार होते हैं –
1.रेखीय /श्रृंखला / बाह्य –
प्रतिपादक – बीएफ स्किनर तथा जेम्स हाॅलेण्ड (1954)
– इसे अभिक्रमित अनुदेशन प्रणाली में ई (परिमार्जन) परिवर्तन पर बल दिया गया।
2. शाखीय / आंतरिक /अरेखीय अभिक्रमित अनुदेशन विधि –
प्रतिपादक – नॉर्मल ए क्राउडर 1955, 1960 इस अनुदेशन प्रणाली में निदानात्मक परीक्षण तथा उपचारात्मक शिक्षण की प्रक्रिया पर बल दिया गया था, तथा बहुविकल्पी प्रश्न भी थे।
3. अवरोही / मैथमेटिक्स –
प्रतिपादक – थॉमस गिलबर्ट 1962
– इस प्रणाली में विषय वस्तु की स्वामित्व पर बल दिया गया अनुक्रिया अवरोही क्रम में होती है अतः सबसे अंतिम पद के प्रति अनुक्रिया सबसे पहले होती है।
3 – ह्वुरिस्टिक प्रणाली /खोज विधि (Heuristic Method) –
अन्य नाम – अनुसंधान विधि / अन्वेषण विधि / खोज विधि
प्रवर्तक – आर्मस्ट्रांग (ब्रिटेन)
इस विधि का सामान्य अर्थ है खोज करना इस विधि में बालक क्रियाशील जिज्ञासु होते हैं
यह विधि प्रतिभाशाली बालकों के लिए सर्वश्रेष्ठ विधि मानी जाती है. इस विधि की आधार भी आगमन विधि की तरह होता है.
4 – खेल विधि (Play Method) –
प्रवर्तक – हेनरी कोल्डवेल कुक
इस विधि के अंतर्गत बालकों को खेल खेल के अंदर शिक्षा दी जाती है.
जैसे कि कोई गत्ते का टुकड़ा है उस पर कुछ शब्द बनाने के लिए दिए जाते हैं.
जैसे कि कूदना बैठना आदि शब्द लिखकर टुकड़ों को दूर-दूर फेंक दिया जाता है. और छात्र इन टुकड़ों को देखकर लिखकर शब्दों के अनुसार क्रिया करता है।
सूक्ष्म शिक्षण विधि(Micro Teaching) –
सूक्ष्म शिक्षण योजना यह कौशल आधारित योजना है, जिसमें शिक्षण कौशल को दृष्टिगत रखते हुए उनके विकास की योजना बनाई जाती है। इस कौशल आधारित योजना में छोटे-छोटे कक्षा समूह 8 से 10 बालक में कम अवधि के शिक्षण 5 से 10 मिनट को केंद्र में रखा जाता है।
सामान्य शिक्षण योजनाओं में पाठ्य पुस्तकों को भी केंद्र में रखा जाता है, किंतु सूक्ष्म शिक्षण में केवल शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है इस प्रणाली का प्रतिपाद्य 1961 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के कीथ तथा एचिसन ने किया तथा यह सिद्धांत प्रस्तुत किया कि यदि अध्यापकों को उनके द्वारा शिक्षण कराए गए कार्य की रिकॉर्डिंग करके पूर्ण दिखाया जाए, तो इससे उन्हें अपने शिक्षण पद्धति में सुधार करने की प्रतिपुष्टि मिलती है। क्योंकि कक्षा शिक्षण एक जटिल प्रक्रिया होती है जिसमें शिक्षकों को अनेक कौशलों का प्रयोग करना होता है, इस प्रणाली में इस शिक्षण कौशल का अधिकाधिक विकास करके त्रुटियों की संख्या कम करने का प्रयास किया जाता है।
इसलिए एलेन ने सूक्ष्म शिक्षण को अवरोही क्रम कहा है। सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया में एनसीईआरटी द्वारा दिए गए मॉडल की कुल 36 मिनट की अवधि निर्धारित की गई है।
Debari Samjhota Kab hua- देबारी समझौता कब हुआ – यह भी पढ़े