व्यक्तिगत विभिनता पर आधारित आधारित प्रविधियां पार्ट – 1

 व्यक्तिगत विभिनता पर आधारित प्रविधियां – पार्ट – 1



1- बिनेटीका प्रणाली (Winnetka Method)- 

प्रवर्तक – डॉक्टर कॉलटर्न  वासबर्न (USA)
इस योजना में बालक को कार्य करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है इस योजना के अंदर पूरे पाठ्यक्रम को छोटे-छोटे खंडों में बाँटकर छात्र अपने एवं ज्ञान की स्वयं परीक्षा करता है। 
अध्यापक मार्गदर्शक होता है, 
इस प्रणाली में बालक को ग्रेड दिए जाते हैं,

2 – डाल्टन प्रणाली ( Dalton Method) –

    प्रवर्तक – मिस हेलन पार्क हस्र्ट
इस योजना में विद्यालय को एक बाल ग्रह के रूप में समझा जाता है, यह योजना स्वतंत्रता तथा सहयोग के सिद्धांत पर आधारित होती है, 
इस विधि का दूसरा नाम स्वाध्याय विधि भी है, 
इस प्रणाली में छात्र को उसकी रूचि समता अथवा योग्यता द्वारा कार्य करने की स्वतंत्रता होती है, 
इस विधि में वर्ष भर के कार्य को महीने, सप्ताह, दिनों, में बांटा जा सकता है.
 छात्र को समय के बंधन में नहीं बांधा जाता है. 
इस प्रणाली में अध्यापक मात्र एक पथ प्रदर्शक के रूप में कार्य करता है.

 3 – प्रोजेक्ट प्रणाली ( Project Method)

    प्रवर्तक – किल पैट्रिक 
पद्धति का जन्म अमेरिका में हुआ. 
 किल पैट्रिक अनुसार प्रोजेक्ट पूरे मन से किया जाने वाला एक उद्देश्य पूर्ण कार्य है. 
जिसे हम एक सामाजिक वातावरण में संपन्न कर सकते हैं. 
यह प्रणाली करके सीखने के सिद्धांत पर बल देती है. 
इस प्रणाली के अंतर्गत समूह का प्रत्येक सदस्य अपनी रूचि और योग्यता के अनुसार कार्य करता है.
 
प्रोजेक्ट के माध्यम से भूगोल इतिहास हस्तशिल्प की शिक्षा दी जा सकती है.

प्रायोजना चार प्रकार की होती है – 


1.सृजनात्मक/ रचनात्मक प्रायोजना 


2.अभ्यास प्रायोजना 


3.समस्यात्मक प्रयोजना 


4. आनन्ददायक /रसास्वादन प्रायोजन 


गांधीजी ने अपने बेसिक शिक्षा मॉडल में प्रायोजना विधि द्वारा यह शिक्षण कराने पर सर्वाधिक बल दिया है 

प्रायोजना विधि के निम्न 6 सौपान होते हैं। 

  1. परिस्थितियों का निर्माण करना 
  1. प्रायोजना का चयन करना 
  1. प्रायोजना की रूपरेखा बनाना 
  1. प्रायोजना का क्रिया वन्य करना 
  1. प्रायोजना का मूल्यांकन करना 
  1. अभिलेख संधारण लेखा-जोखा रखना। 

प्रयोजना विधि के गुण – 

  • सामाजिक गुणों का विकास करती है 
  • समवाय अंतर संबंधों या सहसंबंध के सिद्धांत का पालन करती है। करके सीखने पर आधारित है, अत: कौशलआत्मक पक्ष का विकास करती है। 
  • स्वंय परिश्रम करने तथा समस्या समाधान तक पहुंचाने की भावना का विकास करती है। 
  • यह विधि थार्नडाइक के तीनों नियमों का अनुसरण करती है, अभ्यास का नियम तत्परता नियम, प्रभाव का नियम

4 – किंडर गार्डन प्रणाली /बालो उद्यान विधि ( Kindergarten Method) – 

 किंडर गार्डन विधि का शाब्दिक अर्थ है बच्चों का बगीचा. 
फोर्बेल इस विधि में शिक्षक को तो एक माली तथा बच्चे को एक पौधा और विधालय को बगीचा माना था. 
इस विधि के अंदर बालक  खेल खेल में शिक्षा प्राप्त करता है. 


कृपया ट्रिक्स के अनुसार योजना एक ही उद्देश्य पूर्ण के लिए है इसे मन लगाकर सामाजिक वातावरण में पूरा किया जाता है जीवन उपयोगी शिक्षा

 

पर्यवक्षित अध्ययन विधि (Supervised study) – 

इस विधि का प्रतिपादन 1971 में डेजी मॉरविल जाॅन ने किया।

 इसे निर्देशित अध्ययन विधि भी कहा जाता है। तथा इसमें विद्यार्थी अपनी वैयक्तिक भिन्नताओं रूचियों क्षमताओं के अनुसार शिक्षक के पर्यवेक्षण में स्वयं अध्ययन करते हैं। अध्यापक द्वारा सर्वप्रथम बालकों के अध्यापन कार्य का निर्धारण कर दिया जाता है। तथा उससे जुड़ी विषय सामग्री व सर्दभ  पुस्तकों की जानकारी करवा दी जाती है, ताकि विद्यार्थियों को कोई परेशानी ना हो विधार्थी प्राप्त निर्देशों के अनुसार अपना अध्ययन कार्य प्रारंभ कर देते हैं। तथा शिक्षण द्वारा उनका निरंतर परीक्षण करके उनका मार्गदर्शन किया जाता है। प्रक्रिया के अंत में शिक्षक द्वारा पुनरावृति प्रश्नों के मध्य में उनकी जिज्ञासा का समाधान किया जाता है। इस विधि में बालक अपनी शक्ति से अपनी रुचि की वस्तुओं का स्व अध्ययन करते हैं। अंत इस पद्धति में उपचारात्मक शिक्षण नियत रहता है प्रयोगशाला में पुस्तकालय से छात्रों को ज्ञान मिलने का मौका भी मिलता है। 

संश्लेषण विधि

 शाब्दिक अर्थ होता जोड़ना एकत्रित करना यह विश्लेषण की विपरीत विधि है। जिसमें विभिन्न निष्कर्षों को संगठित करके एक नवीन निष्कर्ष का सर्जन किया जाता है। इसलिए इसे समेटने गूंथने की विधि भी कहा जाता है।  

प्रोफेसर यंग – के अनुसार संश्लेषण विधि में जा सूखी घास में से तिनका बाहर निकाला जाता है वही विश्लेषण विधि में तिनका स्वयं सूखी घास में से बाहर निकलना चाहता है। वास्तविक रूप से देखा जाए तो विश्लेषण विधि संश्लेषण विधि की विपरित होती है तथा विश्लेषण करने के पश्चात ही संश्लेषण किया जाता है। 

संश्लेषण विधि के गुण – 
1 संक्षिप्त तथा सरल विधि है। 
2.विचारों के घठन तथा नवीन विचारों के सर्जन को प्रोत्साहित करती है। 
3.पाठ्यपुस्तक आधारित विधि मानी जाती है। जो पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण कर आती है।
4. ज्यामिति पढ़ाने में विशिष्ट महत्व रखती है

संश्लेषण विधि के दोष – 

1.केवल संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा समस्या समाधान संभव नहीं है,इसके लिए विश्लेषण अनिवार्य होता है। 

2.संश्लेषण से प्राप्त निष्कर्षों से बालकों की क्यों और कैसे जैसी जिज्ञासाओ की संतुष्टि नहीं होती है, 

3.केवल रटने की प्रक्रिया पर केंद्रित होती है 4.अमनोवैज्ञानिक विधि परंतु यह व्यवहारिक विधि है।

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