सीखने के प्रतिफल (learning outcomes)

  सीखने के प्रतिफल (learning outcomes) –


 सीखने के प्रतिफल (learning outcomes) -सीखा हुआ कोई भी ज्ञान बालक में स्थाई हो जाता है. तो उसे हम अधिगम कहते हैं. जब सीखे हुए ज्ञान का बालक आगे की परिस्थिति में उपयोग कर लेता है तो यह एक अधिगम है.
 2017 में एनसीईआरटी द्वारा संपूर्ण देश में सर्वे कार्य करवाया गया था. इस सर्वे कार्य में की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का आखिर प्रतिबल क्या निकलता है. यह भी सुनिश्चित रूप से पता होना ही चाहिए. इस को ध्यान में रखते हुए कक्षा 1 से ही सीखने के प्रतिफल का ब्यौरा तैयार किया गया और प्राथमिक व माध्यमिक स्तर के लिए उसे यह भी स्थित किया गया था.
 2017 में एनसीईआरटी द्वारा संपूर्ण देश में सर्वे कार्य करवाया गया था. इस सर्वे कार्य में की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का आखिर प्रतिबल क्या निकलता है. यह भी सुनिश्चित रूप से पता होना ही चाहिए. इस को ध्यान में रखते हुए कक्षा 1 से ही सीखने के प्रतिफल का ब्यौरा तैयार किया गया और प्राथमिक व माध्यमिक स्तर के लिए उसे यह भी स्थित किया गया था.

सीखने का प्रतिफल क्या है?

हमको पता है कि प्रत्येक बालक अलग-अलग प्रकार से सीखता है. एवं सीखने के बाद में किसी नतीजे पर या परिणाम तक पहुंचता है. इसको जानने के लिए जो मापदंड कक्षावार/ विषयवार तय किए जाते हैं. उनकी प्राप्ति कोई हम सीखने के प्रतिफल के रूप में जानते हैं. अर्थात अधिगम के रूप में जाना जाता है.

सीखने के प्रतिफल की आवश्यकता –

( i ) आरटीई 2009 में यह तय किया गया था कि 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बालकों को निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा दी जाएगी. (कक्षा एक से कक्षा आठवीं तक की शिक्षा) 
(ii) बालक को उसके आयु स्तर के अनुसार शिक्षा दी जावे. 
जैसे कि 6 वर्ष का बालक है तो उसे पहली कक्षा में तथा 7 वर्ष का बालक है तो उसे दूसरी कक्षा में इस प्रकार एक निरंतर क्रम में आगे की शिक्षा मिले. 
(iii) बालकों में स्तरअनुसार कौशल विकास में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाए. 
(iv) बालकों की शैक्षिक उद्देश्य की प्राप्ति की जांच की जाए. 
(v) राज्य को शैक्षिक दृष्टिकोण से राष्ट्रीय स्तर पर विकसित करना चाहिए ताकि शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े नहीं.

सीखने के प्रतिफल के उद्देश्य-

(i) आरटीई 2009 के अनुसार 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के जो बालक होते हैं उनको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की प्राप्ति दी जाए. 
(ii) शिक्षा शास्त्र विषय की  प्रकृति विशेषताएं एवं सीखने के प्रतिफल में समन्वयक बैठाना चाहिए. 
(iv) शिक्षण की प्रक्रिया में सुधार किया जाए. 
विषय वस्तु को बाह्य वातावरण से जोड़ना चाहिए ताकि विद्यार्थियों का समन्वयक अच्छा  विकसित हो सके.
(v) अभिभावकों को जागरूक बनाने के लिए सीखने के उद्देश्य प्रस्तुत करने चाहिए.

सीखने के प्रतिफल को प्रशिक्षकों अध्यापकों अभिभावकों एवं विद्यालय हेतु तैयार किया गया है इसकी सामग्री का विवरण निम्न प्रकार से है-


(1) प्राथमिक स्तर पर सीखने के प्रतिफल आधारित पुस्तिका_प्राथमिक स्तर कक्षा 1 से 5 तक कक्षा के पुस्तिका में सीखने के प्रतिफल को कियाओ व गतिविधियों के साथ दर्शाया गया है। प्राथमिक स्तर में अंग्रेजी, हिंदी, गणित, पर्यावरण अध्ययन पर विशेष सामग्री दी गई है तथा इस स्तर के प्रत्येक विषय के अंतर्गत विषय की प्रकृति, पाठ्यचार्य का विवरण एवं उसकी विशेषताओं को भी सम्मिलित रूप में इसके साथ प्रस्तुत किया गया है।

(2) उच्च प्राथमिक स्तर पर सीखने के प्रतिफल आधारित पुस्तिका_उच्च प्राथमिक स्तर यानी कक्षा 6 से 8 के छात्राओं के लिए सभी विषयों में निर्मित सभी पुस्तिका बालकों के स्तर एवं उनके संज्ञात्मक एवं बौद्धिक क्षमता को ध्यान में रखकर तैयार की गई है इस स्तर की पुस्तिका को भी प्राथमिक स्तर की पुस्तिकाओं की तरह क्रियाओं एवं गतिविधियों के साथ दर्शाया गया है। प्राथमिक स्तर में अंग्रेजी, हिंदी, गणित, पर्यावरण अध्ययन, संस्कृत, उर्दू एवं सामाजिक विषय की सामग्री को प्रस्तुत किया गया है।
(3)विद्यालय परिसर को प्रदर्शित करने हेतु सीखने के प्रतिफल आधारित कक्षा वार पोस्टर _सुनने की जगह प्रत्यक्ष देखने से ज्ञान की अधिक स्थाई एवं रोचक पूर्ण प्राप्ति होती है। इस चीज को ध्यान में रखते हुए विभिन्न विषय आधारित पोस्टर सामग्री भी विद्यालय में उपलब्ध करवाई जा रही है।
(4) माता-पिता संरक्षण अभिभावक समुदाय के लिए सीखने के प्रतिफल आधारित ब्रोशर या लीफलेट का निर्माण भी विद्यालय में किया जा रहा है।

     सीखने के प्रतिफल की विशेषताएं

(1) हर एक विषय के अंदर विषय प्रवेश में विषय की प्रकृति पर संक्षिप्त या एक छोटी सी टिप्पणी दी गई है इसके बाद पाठ्यचर्या अपेक्षाएं दी गई है इस प्रकार से दीर्घकालीन लक्ष्य है जिन्हें शिक्षार्थियों या छात्र छात्राओं को एक समय अंतराल में अर्जित करना होता है।
(2) हर कक्षा के कक्षावार परिभाषित सीखने के लिए प्रतिफल प्रक्रिया पर आधारित है। यह प्रतिबंध एक प्रकार से जांच बिंदु होते हैं जो कि मात्रात्मक और गुणात्मक रूप में मापे जा सकते है। यह प्रतिफल शिक्षार्थियों के संपूर्ण विकास के लिए अपेक्षित संपूर्ण सीखने के अनुसार बच्चे की प्रगति का आकलन करने में शिक्षार्थी की मदद करते हैं।
(3) सीखने एवम सिखाने की प्रक्रिया एक एक प्रतिफल के साथ संयोजक नहीं की जाती है इसका अर्थ यह है कि कोई एक प्रक्रिया यदि शिक्षार्थी के सीखने के अनेक प्रतिफलो को प्राप्त करने में मदद कर सकती है तो वही सीखने के लिए प्रतिफल को प्राप्त करने के लिए एक से अधिक प्रक्रिया का प्रयोग किया जा सकता है।
(4) पाठ्यचर्या अपेक्षाओ के अनुसार सीखने के प्रतिफल की उपलब्धि समझ के लिए शिक्षकों की मदद हेतु प्रतीफलों के साथ-साथ सीखने एवम सिखाने की प्रक्रिया भी सुझाव में दी गई है जो सीखने की प्रक्रिया को पूर्ण बनाता है।
(5) सीखने के उपयुक्त प्रक्रिया एवं सम्बन्धित संसाधनों द्वारा शिक्षक एक समावेशी शिक्षा में विभिन्न क्षमता वाले शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं के अनुरूप विविधतापूर्ण अवसरों एवं स्थितियों का निर्माण कर सकते हैं और उन्हें शिक्षार्थियों को उपलब्ध करा सकते हैं।
(6) कक्षावार अनुभागो को अलग-अलग नहीं देखा जाना चाहिए शिक्षार्थी के संपूर्ण विकास के लक्ष्य की प्राप्ति पर पूर्णता वादी परिप्रेक्ष्य ही सार्थक रहता है।

(iii) सीखने की निरंतरता एवं सीखने के प्रतिफल यानी प्रगति के स्तर के लिए मापन हेतु कुछ मापदंड तय करना चाहिए. ताकि सीखने की प्रतिफल के प्रति अच्छी समझ बन सके.